putting my own matrimonial ad
Shutterstock/MIA Studio

अपनी शादी के लिए मैंने ख़ुद ही पेपर में विज्ञापन दिया

द्वारा Chinmayee दिसंबर 20, 06:11 बजे
शादी के लिए ‘लड़की दिखाना’ जैसी प्रथा से बचने के लिए चंद्रिका ने एक स्थानीय अखबार में अपनी शादी के लिए खुद ही विज्ञापन दे डाला। ‘आत्मनिर्भर और कामकाजी वधू के लिए सुयोग्य वर की आवश्यकता : जाति की कोई बाध्यता नहीं।’ तो क्या चंद्रिका को उनका जीवनसाथी मिला? सुनिए चंद्रिका की कहानी उसी की ज़बानी।

चंद्रिका अहमदाबाद में एक एफएमसीजी कंपनी में काम करती हैं।

सब कुछ अच्छा चल रहा था

मुंबई छोड़ते समय इस शहर से जुड़ी यादें मुझे रोक रही थी। पांच सालों में यह शहर मेरे लिए घर जैसा हो गया था। मुंबई छोड़ने के बाद वहां दोस्तों के साथ बिताए गए पल, मुंबई लोकल की जाने कितनी ट्रिप, गणेश विसर्जन और चौपाटी की पाव भाजी - मैं जानती थी कि मुझे यह सब बहुत याद आने वाला है।

मैं सोच रही थी कि क्या मम्मी पापा के साथ दिल्ली में भी मेरी ज़िंदगी ऐसी ही होगी। मेरे मम्मी पापा मेरी शादी के लिए लड़का ढूंढने में लगे थे, लेकिन मैं पहले एक अच्छी जॉब चाहती थी और शायद एक ब्वॉयफ्रेंड भी। मेरी मम्मी ने मुझसे कहा कि तुम अपना वज़न कम कर लो क्योंकि आजकल के लड़कों को मोटी लड़कियां नहीं पसंद आती हैं।

देखना दिखाना

दिल्ली आने के दो महीने बाद मुझे नौकरी भी मिल गई और मेरी सोच के विपरीत, मेरी लाइफ काफी काफी अलग हो गई थी। मैं अपने अंदर एक नया आत्मविश्वास महसूस कर रही थी और मम्मी पापा का भी मेरे प्रति नज़रिया बहुत बदल गया था। मेरे प्रति उनके व्यवहार से मुझे एहसास हो चला था कि वो अब मुझे अपनी छोटी लाडो की तरह नही बल्कि एक आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर लड़की के रूप में देखते थे। पापा ने तो कई बार मुझे ड्राइविंग सीखने के लिए भी कहा।

लेकिन इस बीच वे यह कभी नहीं भूले की मेरे हाथ भी पीले करने हैं। उन्होंने मेरे लिए लड़का देखना शुरू कर दिया था इसलिए वे मुझे वजन घटाने और अपने चेहरे की अधिक देखभाल करने के लिए हमेशा दबाव डालते रहते थे।

मुझसे बिना पूछे वे हफ्ते के अंत में किसी शाम लड़के और उसके मम्मी पापा को मुझे देखने के लिए बुला लेते और मुझे अच्छी तरह से कपड़े पहनकर हाथ में चाय की ट्रे और चेहरे पर मुस्कान लेकर उनके सामने जाना पड़ता था।

मैं अपने मम्मी पापा को समझ समझा कर थक गई थी कि मुझे बार बार लड़का देखना और चाय की ट्रे लेकर अपनी नुमाइश लगाना अच्छा नही लगता। लेकिन मेरी बातों का उनपर कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था। उनका कहना था कि तुम्हारी शादी की उम्र हो गई है, या तुम अपने लिए खुद ही लड़का ढूंढ लो या हमें ढूंढने दो।

इससे बचने के लिए शादी का विज्ञापन दिया

एक साल बीत गया, लेकिन कोई लड़का नहीं मिला। अपने मम्मी पापा को मायूस देखकर मैं भी काफी परेशान रहने लगी थी। पापा ने तो मुझसे अपने पड़ोसी के बेटे शशांक से बातचीत करने के लिए कह दिया था, जो मेरे जैसा बिलकुल नहीं था। उस दिन तो मैं और भी ज़्यादा दुखी हो गई। मैंने अपने मम्मी पापा की टेंशन को दूर करने का फैसला किया और टाइम्स ऑफ इंडिया में अपनी शादी के लिए विज्ञापन दिया कि आत्मनिर्भर, कामकाजी वधू के लिए सुयोग्य वर की आवश्यकता, जाति की कोई बाध्यता नहीं

मुझे अपने विज्ञापन की जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली।।मेरे मम्मी पापा भी खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। लोगों द्वारा मिले 400 पत्रों में से मैंने 100 पत्रों को पढ़ा और बातचीत आगे बढ़ाने के लिए आठ पत्रों का जवाब दिया।

दुल्हन या दुल्हन के बिना रोका

शिवा उनमें से एक था जिसने उसी दिन मेरे पत्र का जवाब दे दिया था। वह अहमदाबाद में रहकर वहीं नौकरी करता था। हम लगातार एक दूसरे को पत्र लिखते रहे और जल्द ही करीब भी आ गए। मैं उसके पत्रों का बेसब्री से इंतजार करती और उसे भी मेरे पत्रों का इंतजार रहता। वास्तव में हम दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे थे और जल्द ही हमने एक दूसरे को यह बता भी दिया।

हम दोनों कभी मिले नहीं थे और एक दूसरे को सिर्फ़ तस्वीरों में ही देखा था। शिवा ने एक चिठ्ठी में मुझे बताया कि वह ऑफिस के काम के सिलसिले में एक साल के लिए लागोस जा रहा है। मेरे मम्मी पापा जानते थे कि मैं शिवा को पत्र लिखती हूं लेकिन उन्हें हमारे संबंधों के बारे में नहीं मालूम था।

मेरी मां को लगा कि शिवा मुझे बेवकूफ बना रहा है। उन्होंने लड़कियों को बेवकूफ बनाने वाले जाने कितने लड़कों के किस्से मुझे सुना डाले। मेरे मम्मी पापा भी मुझपर दबाव बनाने लगे कि यदि शिवा सच में तुमसे शादी करना चाहता है तो उसे कहो कि वह रोकाकर ले। लेकिन शिवा अलग किस्म का लड़का था, उसे इन बातों से ज्यादा फ़र्क नहीं पड़ता था। वह मुझे अपने प्लान के बारे में बताकर लागोस चला गया।

हमने फ़ैसला किया कि हम दोनों की मौज़ूदगी के बिना हमारे माता पिता को रिश्ते की बात आगे बढ़ानी चाहिए। इसलिए दूल्हा और दुल्हन के बिना ही हमारा रोका हो गया।

लंबी जुदाई

लागोस पहुंचने के बाद शिवा पहले की तरह ही पत्र लिखकर मुझसे जुड़ा रहा। वह मुझसे प्यार करता था और उसने कहा था कि वह डेढ़ साल बाद भारत आकर मुझसे शादी कर लेगा। कुछ हजार पत्रों के बाद आखिर वह दिन भी आ गया। हमारे परिवार ने मिलकर निर्णय लिया कि शिवा जिस दिन भारत आएगा उसी दिन हमारी शादी हो जाएगी।

मेरे घर में शादी को लेकर प्लानिंग चल रही थी लेकिन मेरे मम्मी पापा को अब भी संदेह था कि शिवा आएगा भी या नहीं। मैंने शिवा को तो कभी देखा नहीं था लेकिन मुझे उसके ऊपर पूरा भरोसा था। इसलिए शादी के कार्ड छप गए, हॉल और कैटर्स भी बुक कर दिये गए। शादी के एक दिन पहले शिवा मेरे घर पहुंच गया। उस दिन पहली बार मैंने शिवा को देखा और अगले दिन हमारी शादी हो गई।

हमेशा का साथ

हमारी शादी को 20 साल हो चुके हैं और हमारे दो बच्चे भी हैं। इस हफ्ते हम अपनी शादी की 25 वीं सालगिरह को खास बनाने की प्लानिंग कर रहे हैं।

*गोपनीयता बनाये रखने के लिए नाम बदल दिए गये हैं और तस्वीर में मॉडल का इस्तेमाल किया गया है। यह आलेख पहली बार 22 अक्टूबर, 2018 को प्रकाशित हुआ था।

क्या आप भी अपनी प्रेम कहानी हमें बताना चाहते हैं? नीचे टिप्पणी करें या हमारे फेसबुक पेज पर लव मैटर्स (एलएम) के साथ उसे साझा करें। यदि आपके पास कोई विशिष्ट प्रश्न है, तो कृपया हमारे चर्चा मंच पर एलएम विशेषज्ञों से पूछें।

क्या आप इस जानकारी को उपयोगी पाते हैं?

Comments
Hello, beta. Kaise hain aap? Kya sawaal hain aapka? Yadi aap kisi bhee mudde par humse aur gehri charcha mein judna chahte hain toh hamare discussion board “Just Poocho” mein zaroor shamil hon! https://lovematters.in/en/forum