यूँ तो 2018 में समलैंगिक संबंधों को भारत में वैध करार दिया गया, भारत के LGBTQIA + समुदाय की मुश्किलें पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुई हैं। अभी बहुत से मुद्दे हैं जहां उन्हें विषमलैंगिक लोगों के मुकाबले आये दिन भेद-भाव और मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं। क़ानूनन शादी न कर पाने से लेकर किराये पर घर लेने तक, हर बात के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती हैं। आइए जानते हैं 2018 की उस बड़ी जीत के बाद भारत के LGBTQIA + समुदाय को अब भी किन मुद्दों पर पूर्ण अधिकार या आज़ादी नहीं हैं।
जून पूरी दुनिया में प्राइड मंथ के रूप में मनाया जाता हैं। यह महीना हैं खुशियों का, एकता का और धरती को इंद्रधनुषी रंगो से भरने का। क्या आपने कभी सोचा है कि इसका मतलब क्या है और इसकी शुरूआत कैसे हुई? आइए जानते हैं।
क्या सेक्स से पर्यावरण पर कोई भी प्रभाव पड़ सकता है? जी हां! यदि आपको सेक्स और पर्यावरण दोनों से प्यार है, तो इस पृथ्वी दिवस पर हमारे ईको फ्रेंडली सुझावों पर एक नज़र ज़रुर डालें।
अर्नव अपनी पहचान को ले कर हो रहे उत्पीड़न और मजाक से थक चुका था। एक दिन उसने अपनी सच्चाई पूरी क्लॉस के सामने बता दी। आगे क्या हुआ? अर्नव ने अपनी कहानी गेलेक्सी वेबसाइट के साथ साझा की।
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दुनिया भर में COVID-19 से जुड़े लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी देखी गई। भारत में भी इसकी संख्या काफी बढ़ी। लव मैटर्स इंडिया लाया हैं इंडिया के लॉकडाउन से जुड़ी ऐसी ही कुछ कहानियाँ।
भारत में घरेलू हिंसा कानूनी तौर पर अपराध है, फिर भी 15 से 49 साल की उम्र के बीच की हर तीसरी स्त्री अपने घर पर ही हिंसा का शिकार होती है। COVID-19 ke लॉकडाउन के दौरान भी घरेलू हिंसा के मामलों में बहुत तेज़ी आयी है। यह हिंसा शारीरिक, यौनिक, मानसिक और आर्थिक – किसी भी तरह की हो सकती है। अगर आप इससे जूझ रहे हैं तो इस चक्र को तोड़ने के लिए क्या करेंगे? हम आपके लिए कुछ टिप्स और सलाह लेकर आये हैं।